आज की नारी "शक्ति" या "संसाधन"


आज की नारी "शक्ति" या "संसाधन"




इंसान का जब जन्म होता हैं तो उसे बोध नहीं होता की वह नर हैं या मादा उसे यह बोध कराता हैं हमारा समाज ,
हमारे समाज मैं बचपन से ही खिलौनो से भेद की शुरुआत होती हैं जिसमें बालकों को खेलने के लिए बैट बॉल तो बालिकाओ के लिए डॉल दी जाती हैं। हमारे पुरुष प्रधान समाज के हर युग में नारी को अग्नि परीक्षा से गुजरना होता हैं। बात करे वस्त्रों की तो आज के मॉडर्न समाज में भी नारी के वस्त्रों से उसके चरित्र का आंकलन किया जाता हैं , नारी क्या पहनेगी ,क्या खायेगी-पीयेगी , कहा जाएगी , किस्से बात करेगी इन सभी तथ्यों के निर्णय लेने का एकअधिकार हमारे सुशिक्षित समाज में पुरुष को प्राप्त हैं। शादी के पश्चात नारी को प्रामणिकता पूर्ण मंगल सूत्र और सिन्दूर लगाना होता है. किन्तु ऐसी व्यवस्था पुरषो के लिए नही हैं।

एक विचारणीय बात है की पुरुष जब भोजन करते है तो माता या अर्धांगनी सेवा के लिए तत्पर रहती हैं किन्तु क्या कभी पुरुष को महिला के खाते समय भोजन देते हुए देखा हैं ?

लड़की की शादी के समय लड़की के परिवार वालों के द्वारा लड़के या उसके परिवार वालों को नगद या किसी भी प्रकार की किमती वस्तु बिना मूल्य में देने को दहेज़ कहा जाता है| जिसका अर्थ लड़के के परिवार वालों को लड़के का मूल्य दिया जाना | दहेज प्रथा एक सामाजिक समस्या है,  दहेज प्रथा गैर कानूनी होने के बावजूद भी हमारे समाज में खुले तौर पर राज़ करता है|

दहेज प्रथा एक सामाजिक बीमारी है, ये हमारे जीवन के मकसद को छोटा कर देने वाली प्रथा है| ये प्रथा पूरी तरह इस सोच पर आधारित है, की समाज के सर्व श्रेष्ठ व्यक्ति पुरुष ही हें और नारी का हमारे समाज में कोई महत्व भी नहीं है , दहेज प्रथा को हमारे समाज में हर श्रेणी की स्वीकृति मिल गयी है जो की एक बड़ी समस्या है |

हम सभी ऊँचे विचारों और आदर्श समाज की बातें करते हें, रोज़ दहेज जैसी अपराध के खिलाफ चर्चाएं करते हें, लेकिन असल जिंदगी में दहेज प्रथा जैसे  जघन्य अपराध को अपने आस पास देख के भी हम लोग अनदेखा कर देते हें|

ये प्रथा पहले के जमाने में केवल राजा महाराजाओं के वंशों तक ही सिमित था| लेकिन जैसे जैसे वक़्त गुजरता गया, इसकी जड़ें धीरे धीरे समाज के हर वर्ग में फैल गई हैं |

दहेज प्रथा लालच का नया उग्र-रूप है जो की एक दुल्हन की जिंदगी की वैवाहिक, सामाजिक, निजी, शारीरिक, और मानसिक क्षेत्रों पर बुरा प्रभाव डालता है,
 ये प्रथा एक लड़की के सारे सपनो और अरमानो को चूर चूर कर देता है जिसके बड़े ही दर्दनाक परिणाम सामने आते है |

हमारा समाज पुरुष प्रधान है| बचपन से ही लड़कियों की मन में ये बात बिठाई जाती है की लडके ही घर के अन्दर और बाहर प्रधान हें, और लड़कियों को उनकी आदर और इज्ज़त करनी चाहिए,  इस प्रकार का  अंधविश्वास लड़कियों को लड़कों के अत्याचार के खिलाफ अवाज़ उठाने से रोकते है.

चौंकाने वाला पर सच यह भी हैं की ऊँचे समाज में सामाजिक रुतबे का काफी मुक़ाबला चल रहा है| बेटी की शादी में ज्यादा से ज्यादा खर्च करना, महँगे तोहफे देना, लड़के वालों को मांग से ज्यादा तोहफे देना, जो की धीरे धीरे मांग की रफ़्तार को और आगे ले जाता है,
और इसी झूठी शान के चलते हम जाने अनजाने में दहेज प्रथा को पनपने देते हैं|

दहेज प्रथा के कारण कई घरों मे लड़कियों को उतना मोह और प्यार नहीं मिलता जितना की घर के लड़कों को दिया जाता है| माँ बाप को लड़कियां आने वाली वक़्त में खर्चा का साधन लगती है, और इसी कारण वह कन्या संतान को कई बार अपने हाल में छोड़ देते हें|  इसी तरह लड़का और लड़की में अंतर बढ़ता जाता है |

दहेज़ रुपी बंद ताले की चाबी है शिक्षा | हमे लड़कियों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाना होगा| उन्हें आजादी देनी होगी, आजादी अपने आप को एक मजबूत नारी बनाने की | हमे लड़कियों के पढाई पे ज्यादा से ज्यादा ध्यान और महत्व देना होगा | लड़कियों को पढ़ा लिखा के अपने पैरों पे खड़े होने के काबिल बनाना होगा, जिससे  वक़्त आने पर दहेज के खिलाफ खुद लढ सकें |

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