रामानुजन यानी गणित का दीवाना, 100 से भी ज्यादा तरीकों से बना सकते थे 1 सवाल


रामानुजन बेहद गरीब परिवार से थे. उनके पास अपने शौक पूरा करने के पैसे नहीं थे. मशहूर है कि रामानुजन गणित के एक सवाल को 100 से भी ज्यादा तरीकों से बना सकते थे. इसी खासियत ने उन्हें दुनिया में गणित के गुरु का दर्जा दिला दिया.
 
श्रीनिवास रामानुजन का बचपन अन्य बच्चों जैसा सामान्य नही था. 3 साल की उम्र तक वो बोल नहीं पाए थे, जिसकी वजह से माता-पिता को चिंता होने लगी थी कि रामानुजन गूंगे तो नहीं है. वो विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. उनकी प्रतिभा कभी उम्र की मोहताज नहीं रही. रामानुजन का जीवन सिर्फ 33 तक रहा. 
 
नहीं लगता था पढ़ाई में मन
रामानुजन की शुरुआती पढ़ाई तमिल भाषा से हुई. शुरू में उनका मन पढाई में नहीं लगता था. पर आगे जाकर प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में पहला स्थान प्राप्त किया. आगे की पढ़ाई के लिए पहली बार उच्च माध्मिक स्कूल में गये यहीं से गणित की पढ़ाई की शुरुआत हुई.
 
...प्रश्न पूछने का शौक
रामानुजन को बचपन से ही प्रश्न पूछने का शौक था. और वे कभी कभी ऐसा प्रश्न पूछते थे कि शिक्षकों के दिमाग चकरा जाते थे. दरअसल, किसी सवाल को जानने की उनमें बहुत जिज्ञासा थी.  कहते हैं कि वो अपने अध्यापकों से ऐसा सवाल भी पूछते थे कि 'संसार का पहला इंसान कौन था? आकाश और पृथ्वी के बीच की दूरी कितनी है? समुद्र कितना गहरा और कितना बड़ा है? .
 
...7वीं कक्षा में बीए के छात्र को देते थे शिक्षा
यह भी मशहूर है कि सातवीं कक्षा में पढ़ाई करने के दौरान ही बीए के छात्र को गणित भी पढ़ाया करते थे. मात्र तेरह साल की आयु में ही लोनी द्वारा कृत प्रसिद्द Trigonometry को हल कर दिया था. इसे हल करने में बड़े से बड़े विद्वान भी असफल हो जाते थे.  उन्होंने 16 वर्ष की आयु में G. S. Carr. द्वारा कृत “A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics” की 5000 से अधिक प्रमेय को प्रमाणित और सिद्ध करके दिखाया था.
 
गणित में किया टॉप, बाकी विषयों में हुए फेल
रामानुजन गणित में इतना अधिक पढ़ाई करते थे कि अन्य विषयों पर थोड़ा-सा भी ध्यान नहीं दे पाते थे. इसका नतीजा एक बार ऐसा हुआ कि 11वीं की परीक्षा में गणित में तो टॉप कर लिया जबकि अन्य सभी विषयों में फेल हो गए. पढ़ाई से नाता टूटने के बाद रामानुजन के जीवन के कुछ साल बहुत संघर्ष में गुजरे.
 
अंग्रेजी राज में रामानुजन के पास न तो कोई नौकरी थी और न इसे पाने के लिए बड़ी डिग्री. नौकरी की तलाश में उनकी मुलाकात डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से हुई. अय्यर भी गणित के बहुत बड़े विद्वान् थे. वो रामानुजन की प्रतिभा को पहचान गए और फिर उन्होंने रामानुजन के लिए 25 रुपये की मासिक छात्रवृत्ति की व्यवस्था की. बाद में रामानुजन का प्रथम शोधपत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ.
 
कुछ महीनों बाद रामानुजन को मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में लेखाबही का हिसाब रखने के लिए क्लर्क की नौकरी भी मिल गई. रामानुजन को अपने गणित प्रेम के लिए समय मिलने लगा. इस तरह रामानुजन ने कई नये-नये गणितीय सूत्रों को लिखना शुरू किया.सबसे मजेदार बात यह कि श्रीनिवासन ने गणित सीखने के लिए कभी कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं लिया था. 33 वर्ष की आयु में 26 अप्रैल 1920 को उनका निधन हो गया था.

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