सिनेमाघरों को देखने का नया नजरिया = पद्मावत फ़िल्म के विवादों के बीच मल्टीप्लेक्स का सच

सिनेमाघरों को देखने का नया नजरिया = पद्मावत फ़िल्म के विवादों के बीच मल्टीप्लेक्स का सच


हम यह कतह ही नही बता रहे है की पदमावत देखनी चाहिए या नही ,
ना ही ये बताने का प्रयाश कर रहे हैं की पदमावत मैं इतिहास से छेड़छाड़ हुई है या नही ,
राजनेताओ, इतिहासकारो और सिने समीक्षकों के विचारों से भी आप भली भांति अवगत है।

पद्मावती कहे या पदमावत इस मसले से जूझ रहे दर्शक वर्ग ने अपनी समस्या को सोसाइल मीडिया पर मजाक के जरिये ही सही ध्यान आकर्षित किया हैं।
इस सन्देश मैं करणी सेना से भयभीत मल्टीप्लेक्स की वास्तविकता सामने लाने का प्रयास किया है। 
मल्टीप्लेक्स मैं 10 रूपये के पॉपकॉर्न 70 से 200 रूपये तक बेचे  जाते है ,
वही 10 रूपये की पानी की बोतल 30 से लेकर 50 तक मैं बेचीं जाती हैं।
हर भारतीय के हर दिल अजीज पकवान 2 समोसे को भी दुगने और कही तिगने मूल्यों पर बेचा जाता है.
सिनेमा घरो दर्शक की तलाशी ऐसे ली जाती है कीआतंक का जकीरा साथ लाया हो.
पर वास्तविकता यह है की तलाशी इसलिए होती है की वह खाने की घरेलू सामग्री साथ न ले जा सके  . अनेको सिनेमाघरों मैं तो पार्किंग के नाम पर भी वसूली की जाती है.,

इन सब के बीच चाहे वो पति हो, या बॉयफ्रेंड उसे अपनी मेडम को खुश करने के लिए उसे इन लगानो को अदा करना ही होता है।
मजाक मैं ही सही पर सोसाइल मीडिया का यह सन्देश सत्य की ओर धयान तो आकर्षित करता है  ,
इस विषय को दर्शको के साथ साथ सरकार को भी गंभीरता से लेना चाहिए। 

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