सुनिए ये आप बीती, कैसी है ये राजनीति . . . . .

सुनिए ये आप बीती, कैसी है ये राजनीति



बात कर रहे है राजनीति की इसमें कोई किसी का सगा नहीं होता ,यहां रिस्ते नहीं वोटबैंक देखे जाते है.
आज के दौर मैं तो अपने ही धर्म और जाती के युवाओ को प्रलोभन रुपी कंही तिलक लगाया जाता है तो कंही टोपी पहनाई जाती है।

आम जनता को चुनाव से पहले सरआंखों पर बिठाया जाता है और चुनाव हो जाने के बाद उसी आम जनता को गुठली के जैसे फ़ेंक दिया जाता है।

सुनिए ये आप बीती कैसी है ये राजनीति 

प्रथम लीजिए मेरा
नमस्कार जनभाल
दूंगा आठ जबाव में
जब होंगे चार सवाल 

हे किसानो तुम धीर धरो
अब कोई न तुमको भय होगा 
ये राजनीति है वादों पर
उन वादों  पर संशय होगा

चकाचौंध चांदनी मैं
अपने राज में कर दूंगा 
लाभ मिले न तुमको तो
सबका सब मैं ही रख लूँगा 

मैं जनता का सेवक हूँ
सेवा तुमसे करवाऊंगा 
प्रचार में जितना खर्च हुआ
पांच साल बैठकर खाऊंगा 

कच्ची गलियों में जा जाकर
कितना त्रस्त हुआ हूँ मैं 
अब न देखूंगा उन गलियों में
पांच सितारा में ही खाऊंगा 

विपक्ष दल की निंदा करके
हमको तो आगे बढ़ना है 
साम दाम दंड भेद अपनाकर
अपने पक्ष में करना है 

महिलाऐं पद पर हैं पदस्थ
पर पुरुष करते संचालन हैं 
निर्णय नहीं लेती पदधारी होकर
करती आज्ञा का पालन हैं 

अवास उन्ही को होते हैं
जो घर में रहने लायक हैं
झोपड़ी रहने बाले तो
इनकी नजरों में नालायक हैं

ठगना ठगना ठगना है
हमको जनता को ठगना है 
मुँह पर हसीं दिल में छुरी
सदैव संग में रखना है 

क्या सही गलत का ज्ञान नहीं
इन ठगियों से ठग जाते हो 
सब लूट लिया करते हैं वो
तुम खाली हाथ रह जाते हो 

क्यों नहीं कोई नेताजी को
क्यों कोई नहीं समझाता है 
जनता न इतनी भोली है
क्यों तू मुर्ख समझता जाता है

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